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Wednesday 28 March 2012

कहने के लिये तो बहुत है लेकिन, ज़बान पर कुछ आता नहीं

कहने के लिये तो बहुत है लेकिन, ज़बान पर कुछ  आता नहीं
जब  दिन खुलेगी तो, चिड़ियों की चहचाहट सब बोल देगी

बरसों से उम्मीद लगाये बैठा था की वो आयेंगे
पता न था की सिर्फ  एक  दिन सारा राज़  खोल  देगी

हम  थे ना-काफी उनको बुलाने के लिये
इस  दिन ने इशारा किया और वो आ गयीं

अब धूप  निकली है तो मंज़र अलग है
आब-ओ-हवा सारे रास्ते खोल गयी











2 comments:

  1. Fir bhi kaafi kuchh keh gaye ho tum, ek aisi bhasha me, jo seedhe dil ko chhoti hai... :)

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