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Thursday 29 March 2012

कहना जो है कहूँगा ज़रूर, शब्द अभी ताज़ा है


कहना जो है कहूँगा ज़रूर, शब्द अभी ताज़ा है
जिंदगी है लंबी, वक्त कम है न जादा है

समंदर से सीपियों को लाने में 'शशि'
हौसला है, तमन्ना है, हिम्मत है

कर दिखाऊंगा लोगों को
सूरज अभी निकलना कहाँ है

वक्त की आंधी चलेगी मेरे ओर
मैंने भी अपना पंख खुला रखा है

तमन्ना की पंखुड़ी पे बादल मंडराएंगे बून्दों की तरह
पत्तों की चिकनाहट को मैंने संजो रखा है

आगाज़ हुई है आज नए दिन की
जीने के लिये हीं मैंने आज तक खुद को बचा रखा है





3 comments:

  1. Waah dost, is nazm ki nazakat hi kuchh aur hai. Kalpana ke dhaagon ko kitni baariki se piroya hai tumne... Bahut khoob...

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  2. @ Sassoto thanks, bahut bahut thanks.... accha laga ki tumhe ye pasand aaya... hope ki aage bhi likhta rahunga.... keep reading...

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