Pages

Sunday 6 April 2014

पहुँचता हूँ जब तेरे क़दमों पे

वो जो नूर देखा है

तेरी छवि में मैंने


गिरता हूँ रोज़ दिन

तेरे क़दमों पे

सरकता सरकता 
पहुँचता हूँ जब तेरे क़दमों पे 
तेरे उन पिछले आहटों की खनक 
मेरे सीने में गूँज उठती है

तुम ही थी, मेरे साथ 
सदियों से

हाथ पकड़, मैं तुम्हारे सहारे ही खड़ा रहा
आज तुम्हे छोड़ रहा हूँ

तेरी आहट को बनाने वाले 
उस पायल ने 
मुझे बुलाया है

फिर बांध लेना मुझे पैरों मे

और तुम्हारे संगीत से
शयद कोइ और भी गिरे तेरे पैरों में
सरकता सरकता 
पहुंचे तेरे क़दमों तक
और फिर वही पिछले 
आहटों की खनक ...

No comments:

Post a Comment