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Friday, 30 March 2012

आज आँख बोझिल है, और सूरत दिल में चुभ रही है

आज आँख बोझिल है, और सूरत दिल में चुभ रही है
सपने गर्त में, और आशा कहीं छुप रही है

ताज़ा हैं ज़ख्म, हाथ मल रही है
आंसू साँसों के साथ मिल, सिसकियाँ ले रही है

कहा था मैंने, समय अब थम जाएगा
घढ़ी भी धीरे-धीरे, चल रही है

जब निकला था घर से हौसला ले के
मालूम न था की आंधी चल रही है

देखे थे जो सपने, धूल में मिल रही है
ताकत थक रही है, सिमट रही है

उन चमकीले तारों कि तरह, रात में निकलने वाले न हो जाना 'शशि'
माना कि रौशनी घट रही है |





2 comments:

  1. Socha kuchh aur paaya kuchh.... Fir bhi rakhna hai haunsla .... very motivating thought.. Strikes deep...

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  2. @Sassoto thanks ... keep reading...

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