जहाँ लोग अपने जैसे हूँ
उल्लू
जो रात को जागता है
और दिन को सोता है
चलो चलें आज वहां
जहाँ लोग मन से काम करते हों
चाहत हो तभी काम करते हों
ऐसा स्वर्ग मैंने देखा है
बस और मेट्रो से एक डेढ़ घंटे लगते हैं वहां पहुँचने में
और इस स्वर्ग में आप प्रवेश भी कर सकते हैं
लेकिन सिर्फ स्वर्ग दर्शन के लिए
वहां रहने वाले लोग
मेहनती होते हैं
कम से कम कागज़ पे तो ज़रूर
वहां रहने वालों को स्वर्ग
एक कागज़ देता है
तीन चार साल बाद
और फिर वो अपना स्वर्ग
बदल लेते हैं
गम बस इतना है :
की हम भी मेहनती हैं
बस
न तो हमारे पास ठप्पे हैं
और न ऐसे ठप्पे
जिनकी लोगों को ज़रुरत हो |
अब,
किसी गुलाब की क्या ज़रुरत
जब कभी न मुरझाने वाले गुलाब
बाज़ार में
बिकते हैं |
वो गुलाब ये सोचे
की मैं अब कभी न मुर्झओंगा
" आखिर प्रतियोगिता है भाई "
तभी कुछ उद्धार हो सकता है,
लेकिन वे स्वर्ग वाले भागवान
कुछ न कुछ तो रास्ता निकल ही लेंगे,
स्वर्ग में रहने ,
और धरती पे
स्वर्ग बनाने का |
उनको प्रणाम |
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