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Wednesday, 27 April 2011

धरती पे स्वर्ग

चलो चलते हैं आज कहीं 
जहाँ लोग अपने जैसे हूँ

उल्लू  

जो रात को जागता है                                                        
और दिन को सोता है

चलो चलें आज वहां
जहाँ लोग मन से काम करते हों
चाहत हो तभी काम करते हों

ऐसा स्वर्ग मैंने देखा है
बस और मेट्रो से एक  डेढ़ घंटे लगते हैं वहां पहुँचने में 
और इस स्वर्ग में आप प्रवेश भी कर सकते हैं

लेकिन सिर्फ स्वर्ग दर्शन के लिए 

वहां रहने वाले लोग
मेहनती होते हैं
कम से कम कागज़ पे तो ज़रूर

वहां रहने वालों को स्वर्ग
एक कागज़ देता है 
तीन चार साल बाद

और फिर वो अपना स्वर्ग 
बदल लेते हैं

गम बस इतना है :

की हम भी मेहनती हैं
बस 
न तो हमारे पास ठप्पे हैं
और न ऐसे ठप्पे 
जिनकी लोगों को ज़रुरत हो |

अब,
किसी गुलाब की क्या ज़रुरत 

जब कभी न मुरझाने वाले गुलाब
बाज़ार में 
बिकते हैं  |

वो गुलाब ये सोचे 
की मैं अब कभी न मुर्झओंगा 

" आखिर प्रतियोगिता है भाई  "

तभी कुछ उद्धार हो सकता है,

लेकिन वे स्वर्ग वाले भागवान
कुछ न कुछ तो रास्ता निकल ही लेंगे,

स्वर्ग में रहने ,
और धरती पे
स्वर्ग बनाने का |

उनको प्रणाम |

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