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Saturday, 23 April 2011

पंडित जी !

आज
 नींद नहीं आई
 नींद नहीं आई 
 नींद नहीं आई                                                                    

तीन बज गए 
आज नींद नींद नहीं आई |

सपने देखे थे मैंने
नौ बजे 
नींद के;
वो प्यारी सी ,
नींद नहीं आई |

शायद जागते हुए सापने देखने की आदत हो गयी है ;
सपने कभी सच नहीं होते ,
सच हीं  कहा है |

आँखें बंद कर
पूरी कहानी याद आ जाती है
बहुत रुलाती है
 बहुत रुलाती है|

वो झूले , वो डिब्बे, वो रेलगाड़ी
वो तितलियाँ , वो झरने , वो आटे की कटोरी 
रोज़ शाम घूमना , मिठाई खाना 
सब कहते थे , है बहुत नत्ख्ती  |

स्कूल से आते वक्त 
सड़क के गड्ढों में,
जमे बारिश के पानी से,
दोस्तों को छेड़ना,
स्कूल में सबों से बहुत बात करना : 

एक पंडित जी थे , बहुत याद आते हैं ,

जो पूछा करते थे ' फ़िलोसोफिकल ' सवाल ,
और कोई न दे पता था उनका जवाब;
चार पाच मिनट बाद उठता था मेरा हाथ
और जवाब के साथ हमेशा की तरह हाज़िर रहता था
उनका बेटा , लाडला,
जिसको श्रृष्टि का हिज्जय  तो नहीं आता था

मगर श्रृष्टि , विज्ञानं, और भगवन के बीच
कुछ रिश्ता बता पता था |

बात फैली 
चारो उर
प्रिंसिपल और शिक्षक हैरान,
तारीफ्फें भी होती थी |

पंडित जी !

आज कुछ आजीब हो गया है
तीन बाजे रात तक नींद नहीं
और 
अपने ही सावल का जवाब नहीं मिल रहा है |

आज न आप हैं 
न हाथ  उठाने वाला
न हाथ पकड़ने वाला |

बस
लोगों से सुना है
" ये सब की जिंदगी में आता है " |

पता नहीं
मगर आपका बेटा
भीड़ में खोता जा रहा है |

आजकल किसी से नहीं मिलता 
आकेले रहता है, अपने में,

और उजाला देख के आखें
चौंध जाती हैं |
और सुबह कहें या दिन 
बारह बजे उठता है
और आज
रात के तीन बज गए |

पंडित जी !

कल एक जगह जाना है
किसी मददगार से मिलना है
पता नहीं छह बजे मैं कैसे उठूँगा
इस सावल का तो मेरे
' अलार्म क्लोक्क  ' के पास भी जवाब नहीं है !

आज मैं  हार गया !
लगता है जैसे सब छूट गया :

किताबों से लेकर आपना खून भी
पराया  लगता है |
रोटी सब्जी बनता हूँ
बहुत अच्छे से घर सजाता हूँ, 

और रोटी तोड़ ,
सब्जी मिला के ,
मेरा हाथ  ;

वहीँ रह जाता है
वहीँ रह जाता है |

आधी दूर
आधी दूर
आधी दूर

आज मैं खा नहीं रहा  ,
और लाखों के सामने कुछ भी नहीं है  |

आपको आदर्श मानता हूँ ,
कम से कम इसलिए तो ज़रूर,
की आपकी जिन्दगी निभ गयी |

मैं तो,

आधी दूर
आधी दूर
आधी दूर |



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