आँखें बंद किये नींद का इंतजार कर रहा था
उस चांदनी से मैं कुछ डर रहा था,
बहुत गोरा है मेरा चाँद
वो चाँद मुझे छेड़ रहा था |
फर्श से टकराकर कमरे में चारों ओर
फैलने की आदत गयी नहीं है उसकी,
जब तक मेरे अंदर समां न जाये
फ़रिअद पूरी न होगी उसकी :
कि मेरा अक्स
अभी तक जाग क्यूँ रहा है ?
कि मेरा सपना
अभी तक
देख क्यूँ नहीं रहा है ?
मैंने कहा की छत पर आ जाता हूँ बात करने,
लेकिन मेरा चाँद - चाँदनी से मुझे डरा रहा है |
उस चांदनी की चौंध में,
मुझे सुलाने की कोशिश
उसकी , कामियाब रोज़ होती है |
मेरा चाँद सुबह तो डूब जाता है,
मगर दिन भर याद आता है |
waah... kya baat hai yaar. kya tulna ki hai tumne chand se apne premika ki :)
ReplyDelete@saswata thanks, feels good when one appreciates. But truly, I would like to have someone like you, who writes and writes good, to show me the deficiencies or ways in which I can make things better. Thanks. :)
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