डिब्बे जैसे घर
और कभी न ख़त्म होने वाले रास्ते
वही तेज़ धूप और गर्म छत की आंच,
सबमे मैंने
उस आसमान को
देखा है |
भीग कर उस की बूंदों में
उस छत से बचा हूँ,
न जाने कब
ये आसमान मुझे बचाएगा ?
और कभी न ख़त्म होने वाले रास्ते
वही तेज़ धूप और गर्म छत की आंच,
सबमे मैंने
उस आसमान को
देखा है |
भीग कर उस की बूंदों में
उस छत से बचा हूँ,
न जाने कब
ये आसमान मुझे बचाएगा ?
deep shashi...tis was the first one that really caught my attention. i thnk u shud concentrate more on hindi. its what naturally flows from u. way to go.
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