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Monday 7 April 2014

छिप रही हो तुम

हाँ मैं जानता हूँ 
कि डिम्पल जो लुक्का-छिप्पी खेल रहा है 
वो खेलना तुम भी  जानती हो 

ऐसा नहीं है की तुमको ये नहीं पता है 
फ़र्क सिर्फ इतना है 
की वो अपने छुट्टी के समय पर 
बड़ों से पूछ कर 
दोस्तों को जुटा कर 
और अपने मन से 
खेल रहा है

तुम्हारा खेल कुछ और हीं है

तुम तो न दोस्तों को जुटाती हो 
न हीं किसी से पूछती हो 
और क्यूंकि छुट्टी तुम्हारे पास रहता है बहुत 

छिप जाती हो  कहीं 
बाहर आती हीं नहीं

ऐसी शाम के साये में 
जहाँ धूप और छांह का पता न चले 
उस चंद की तरह चुप जाना  
तुम्हारी फ़ितरत बन गयी है 





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